लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद एनडीए सरकार ने कामकाज शुरु कर दिया है। अब विपक्ष एनडीए को संसद में घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है। नेता प्रतिपक्ष कौन होगा इस पर मंथन जारी है। इस बीच नेता प्रतिपक्ष के लिए कितनी सीटों की आवश्यकता होती है यह भी सवाल बेहद अहम रहा है। इस बार कांग्रेस को करीब 100 सीट मिली हैं।
- कुल सीटों का 10% यानी 55 सीटें जरुरी
- कांग्रेस को मिली हैं इस बार 100 सीट
- पिछली दो चुनाव से कांग्रेस 55 सीटों से पीछे रही थी
- कांग्रेस को पिछली बार नहीं मिल सका था नेता प्रतिपक्ष का पद
- 1977 में नेता प्रतिपक्ष वेतन भत्ता कानून बनाया गया नियम
माना जा रहा है कि इस बार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद कांग्रेस के संसदीय दल के नेता को मिल सकता है। पिछली दो लोकसभा में कांग्रेस 55 सीटों से पीछे रही थी। इस कारण उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा भी नहीं मिल पाया था। नेता प्रतिपक्ष के लिए लोकसभा की कुल 543 सीटों की संख्या का 10 फीसदी नंबर का नियम कहां से आया और इसको लेकर कानूनी पेचीदगियां क्या है इस पर भी बहस जारी है।
नेता प्रतिपक्ष को लेकर कानूनी जानकार और लोकसभा में पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी अचारी का कहना है सरकार के विरोधी दलों में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को विरोधी दल के नेता का दर्जा मिलता है। हालांकि यह बात चलन में है कि नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए सबसे बड़े विरोधी दल को कम से कम कुल सीटों का 10% यानी 55 सीटें चाहिए। लेकिन लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल अचारी इसकी अनिवार्यता नहीं मानते हैं। अचारी के मुताबिक संसदीय एक्ट 1977 में नेता प्रतिपक्ष के वेतन भत्ते आदि को परिभाषित किया गया है। एक्ट की धारा-2 में नेता प्रतिपक्ष को परिभाषित किया गया है। इसके तहत कहा गया है कि नेता प्रतिपक्ष विरोधी दल का नेता होता है। लोकसभा में जिस विपक्षी दल की संख्या सबसे ज्यादा होती है। उसके नेता को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर लोकसभा के स्पीकर मान्यता देते हैं। इस एक्ट में कहीं नहीं लिखा हुआ है कि नेता प्रतिपक्ष के लिए कुल सीटों की संख्या का 10% यानी 55 सीटें होनी चाहिए।
लोकसभा स्पीकर मावलंकर ने तय किया था 10% का नियम
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का मामला बेहद पुराना है। 1952 में पहले आम चुनाव के बाद लोकसभा का गठन हुआ और तब 10% सीटें मिलने के बाद नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिए जाने का नियम आया था। इसके लिए तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर ने नियम तय किया था कि नेता प्रतिपक्ष के लिए 10% सीटें होना चाहिए। लेकिन इसके बाद 1977 में नेता प्रतिपक्ष वेतन भत्ता कानून बनाया गया। नेता प्रतिपक्ष वेतन भत्ता कानून में सरकार के विरोधी दल का नेता उसे माना जाएगा,, जिस दल की संख्या सबसे ज्यादा होगी।
नेता प्रतिपक्ष के वेतन भत्ते और पावर
नेता प्रतिपक्ष लोकसभा की कई महत्वपूर्ण समितियों जैसे सार्वजनिक उपक्रम और सार्वजनिक लेखा समेत कई समितियों के सदस्य होते हैं। कई संयुक्त संसदीय पैनलों में होने के साथ ही नेता प्रतिपक्ष कई चयन समितियों में भी सदस्य होते हैं। जिसमें प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो सीबीआई भी शामिल हैं।समिति इन जैसी दूसरी केंद्रीय एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति करती है। इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ केंद्रीय सूचना आयोग जैसे वैधानिक निकाय प्रमुख की भी नियुक्ति करने वाली समिति के सदस्य होते हैं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद कैन्द्रीय कैबिनेट मंत्री के बराबर माना जाता है। केंद्रीय मंत्री के बराबर वेतन और भत्ते के साथ अन्य सुविधाएं नेता प्रतिपक्ष को मिलती हैं। नेता प्रतिपक्ष को फिलहाल प्रति माह 3 लाख 30000 रुपये सैलरी दी जाती है। इसके अलावा कैबिनेट मंत्री की तरह सरकारी बंगला और ड्राइवर के साथ एक कार मिलती है। नेता प्रतिपक्ष के लिए लगभग 14 कर्मचारियों का स्टॉफ रहता है। जिसका पूरा खर्च सरकार ही वहन करती है।
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