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लोकसभा चुनाव: कम मतदान…’दल’हैरान…! 2019 की अपेक्षा दोनों चरणों में दिखाई नहीं दिया मतदाताओं में 1962 वाला उत्साह….चौं​काने वाले हो सकते हैं परिणाम!

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लोकसभा चुनाव में पहले दौर की 102 सीट और दूसरे दौर में 88 सीटों पर मतदान हो चुका है। इन 190 सीटों में से बीजेपी के खाते में 80 सीट जाती दिखाई दे रही हैं। जबकि बाकी की 110 सीट एनडीए और इंडिया एलायंस के घटक दलों के हिस्से में जाने की संभावना है। लेकिन इन 190 सीटों पर हुए मतदान का घटता प्रतिशत नेताओं के के लिए चिंता का सबक बन गया है। पहले दौर में जहां 102 सीटों पर मतदान में 7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। जिसे राजनीतिक के पंडितों के बीच इस एहसास को पुख्ता कर दिया था कि लोकसभा में के इस चुनाव में वोटरों के बीच उत्साह की कमी है। वहीं दूसरे चरण में भी 13 राज्यों की 88 सीटों पर करीब 68 फीसदी मतदान दर्ज किया गया है। यह आंकड़ा पिछली बार से कम है। क्योंकि पिछली बार 2019 में इन 88 सीटों पर 70.05 फीसदी वोट पड़े थे। दूसरे चरण में जहां जहां बड़े राज्यों में वोटिंग का प्रतिशत जहां कम रहा वहीं छोटे राज्यों के मतदाताओं ने जमकर मतदान में हिस्स लिया। दूसरे चरण में केरल में मतदान प्रतिशत 70.21 फीसदी दर्ज किया गया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से चुनाव में उतरे थे। जहां 72.70 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। वायनाड मतदान दर में गिरावट देखने को मिली है। पिछले 2019 के चुनाव में 80.04 प्रतिशत की तुलना में इस बार करीब 8% कम मतदान हुआ है।

  • कम वोट प्रतिशत… अधिक चिंता
  • मतदान को लेकर उत्साह क्यों नहीं नजर आ रहा
  • क्या खत्म हो गया नए वोटर में वोटिंग का क्रेज
  • दूसरे चरण में कई सीटों पर हुई कम वोटिंग
  • राहुल की सीट वायनाड पर 8 प्रतिशत कम मतदान

लोकसभा चुनाव में पहले दौर की 102 सीट और दूसरे दौर में 88 सीटों पर हुआ मतदान नेताओं के के लिए चिंता का सबक बन गया है। पहले चरण में 7 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। जिसे राजनीतिक के पंडितों के बीच इस एहसास को दिया था कि लोकसभा में के इस चुनाव में वोटरों के बीच उत्साह की कमी है। दूसरे चरण में भी 13 राज्यों की 88 सीटों पर करीब 68 फीसदी मतदान मतदान दर्ज किया गया है यह आंकड़ा पिछली पिछली बार से कम है। क्योंकि पिछली बार 2019 में इन 88 सीटों पर 70.05 फ़ीसदी वोट पड़े थे।

एमपी में पिछली बार से 11 फीसदी कम वोटिंग

वहीं मध्य प्रदेश में 57.88 फीसदी मतदान दर्ज किया गया। प्रदेश की खजुराहो, टीकमगढ़, दमोह, रीवा, सतना पर सीट पर करीब 58.88% वोटिंग दर्ज की गई है जबकि इन सीटों पर 2019 में 67 फ़ीसदी मतदान दर्ज किया गया था। इस तरह मध्य प्रदेश में दूसरे चरण में भी 8 फ़ीसदी की वोटिंग दर में कमी हुई है। कम वोटिंग से पार्टियों में डर साफ नजर आ रहा है। खासकर महिला वोटर के कम प्रतिशत में चिंता बढ़ा दी है। दूसरे चरण में महिलाओं ने पिछले चुनाव की तुलना में 11 फीसदी कम मतदान किया है। वोटिंग प्रतिशत घटने के पीछे एक वजह यह भी मानी जा रही है कि इन्हीं 6 लोकसभा सीटों पर शुक्रवार 26  अप्रैल को करीब साढ़े 3 हजार से अधिक शादी समारोह हुए तो दूसरी बड़ी वजह मौसम का गर्म मिजाज भी है। यहां करीब 40 डिग्री से अधिक तापमान दर्ज किया गया है। इस दूसरे चरण के दौरान असम की 5 सीट में 71.11 प्रतिशत वोट डाले गये। वहीं महाराष्ट्र की 8 सीटों पर भी महज 57.83 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। जबकि राजस्थान में यह आंकड़ा 64.07 फीसदी तक पहुंचा। उधर बिहार में 55.08 प्रतिशत तो जम्मू-कश्मीर में 71.91 प्रतिशत मतदान दर्ज किय गया। टीएमसी शासित पश्चिम बंगाल में मतदान का प्रतिशत 71.84 तक पहुंचा। चुनाव आयोग को दूसरे चरण में पश्चिम बंगाल में करीब 300 शिकायतें मिलीं थी। जिनमें ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत अधिक थी। उत्तरप्रदेश की गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट पर 53.30 फीसदी मतदान दर्ज किया गया। यह तुलनात्मक रूप से 2019 के लोकसभा चुनाव से कम है। उस समय 60.47 प्रतिशत मतदान हुआ था। जबकि 2014 में 60.38 प्रतिशत दर्ज किया गया और 2009 में महज 48 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था। इसी तरह कर्नाटक के बेंगलुरु में लगभग आधे मतदाताओं घर से नहीं निकले। बेंगलुरु सेंट्रल, बेंगलुरु नॉर्थ और बेंगलुरु साउथ सीट पर मतदाताओं की भागीदारी बहुत कम रही। बेंगलुरु सेंट्रल में अनुमानित मतदान 52.81 प्रतिशत तो बेंगलुरु उत्तर में 54.42 प्रतिशत और बेंगलुरु दक्षिण में 53.15 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया।

कई जगह किया गया मतदान का बहिष्कार

दूसरे चरण के मतदान में उत्तर प्रदेश के मथुरा और राजस्थान के बांसवाड़ा के साथ महाराष्ट्र में परभणी लोकसभा क्षेत्र के कुछ गांवों में मतदाताओं ने विभिन्न समस्याओं को लेकर नाराजगी जताई और शुरू में मतदान का बहिष्कार किया हालांकि लेकिन बाद में अधिकारी इन नाराज लोगों को मनाने में सफल रहे। दूसरे चरण में भी सुबह 7 बजे मतदान शुरू हुआ जो शाम 6 बजे समाप्त हुआ। लेकिन इस दौरान कई राज्यों में पड़ने वाली भीषण गर्मी ने मतदताओं को हैरान परेशान किया।

चिंता में सियासी पार्टियों के कर्णधार

सियासी पार्टियों के कर्णधारों के लिए यह कम वोट प्रतिशत ज्यादा चिंता का विषय बन गया है। मतदान के प्रति आम लोगों में अनमनापन दिखाई दिया है। जिसने राजनीतिक पंडितों के बीच इस बात को पुख्ता कर दिया कि आमचुनाव में वोटरों के बीच उत्साह की कमी है। मतदाताओं ने सत्ताधारी दल के खिलाफ किसी तरह की नाराजगी तो अब तक जाहिर नहीं की। लेकिन उसे फिर से चयन के लिए किसी तरह का जोश भी नजर नहीं आ रहा है। वहीं विपक्षी दल भी सरकार के खिलाफ और अपने पक्ष में कोई सियासी लहर पैदा करने में लगभग समर्थ सा नजर आ रहा है। शेयर मार्केट में तेजड़ियों का भले ही जोर हो लेकिन चुनावी राजनीति पर मंदड़ीय ही हावी नजर आ रहे हैं।

62 प्रतिशत युवाओं ने पंजीयन ही नहीं कराया!

देश में दूसरा सबसे अधिक आंकड़ा युवा वोटर का है। 18 से 25 साल के युवा वोटर के बीच ऐसे तो मतदान को लेकर उत्साह नजर आना चाहिए यह वोटर बेचैनी से 18 साल पूरे होने का इंतजार करते हैं। जिससे वोट के समय अपना भी योगदान दे सके और मतदान केंद्र तक पहुंचकर वोटिंग का अनुभव हासिल करें। पहले और दूसरी बार के वोटर में यह उत्साह नजर आना चाहिए लेकिन चुनाव आयोग के आंकड़ों पर घर करें तो इस बार पहली बार मतदान करने वाले देश के औसतन 38% नए मतदाता ही पंजीकरण करवा पाए हैं। यानी 18 साल पूरे कर चुके करीब 62% युवाओं ने वोट डालने की ललक की नजर नहीं आई। सियासी विशेषज्ञों की माने तो 2019 में युवाओं ने बढ़-चलकर वोटिंग में हिस्सा लिया था। जिससे भाजपा को बेहतर वोट प्रतिशत हासिल हुए और अधिक सीटों पर वापसी करने में बीजेपी को सफलता मिली। उसे चुनाव में बीजेपी कई सीटों पर बहुत कम अंतर से जीती थी। केवल उत्तर प्रदेश में ही ऐसी सीटों की संख्या 18 थी। इस बार वोट प्रतिशत का घटना एक सीटों के समीकरण को पलट सकता है। जहां 2019 में बहुत कम मार्जिन से जीत हार हुई है।

दिखाई नहीं दे रहा 1962 जैसा उत्साह

1962 के आमचुनाव की बात करें तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश की जनता के सामने तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का दावा पेश किया था। उस समय उन्हें 361 सीट हासिल हुई थी। कांग्रेस के बाद लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में कम्युनिस्ट पार्टी के उभरी थी लेकिन उसके पास भी लोकसभा की महज 29 सीट ही थी। 1962 में कांग्रेस को मिली यह सीट बताती है कि तब नेहरू को तीसरी बार भी मतदाताओं ने शिद्दत से पीएम के रूप में पसंद किया था। लेकिन आज हालात बदले हुए हैं। सत्तारुढ़ दल अपने तरीके से लाभार्थियों की एक दुनिया बनाने में जुटा है। इसमें सबसे आगे केंद्र की एनडीए सरकार ही है। जिसने लोगों के खाते में सीधे अधिक मदद भेजने का सिलसिला शुरू किया है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या डायरेक्ट ट्रांसफर आफ मनी कि मतदान में कोई भूमिका है।

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